Different styles of Poets

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Different styles of Poets girl

Life is incomplete without music, everyone hums something and whatever we hum is based on the feelings and imaginations of poets like: A young girl is sitting on the balcony, her hair is open and looking at her face it seems that she is sad. Seeing her face posture, it seems as if she is about to commit suicide by jumping off the roof.

If different poets were asked to write on this, then let’s see how they write:

मैथिली शरण गुप्त

अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो

किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो घ्

धीरज धरो संसार में, किसके नहीं है दुर्दिन फिरे

हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।

काका हाथरसी

गोरी बैठी छत पर,  कूदन को तैयार

नीचे पक्का फर्श है,  भली करे करतार

भली करे करतार, न दे दे कोई धक्का

ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का

कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ना

उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पड़ना।

And if Gulzar sahib had said the same thing, how would he have said:

वो बरसों पुरानी ईमारत

शायद

आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी

कई सदियों से

उसकी छत से कोई कूदा नहीं था।

और आज

उस

तंग हालात

परेशां

स्याह आँखों वाली

उस लड़की ने

ईमारत के सफ़े

जैसे खोल ही दिए

आज फिर कुछ बात होगी

सुना है ईमारत खुश बहुत है

In the same way, some words of Shri Harivansh Rai Bachchan ji would have been like this:

किस उलझन से क्षुब्ध आज

निश्चय यह तुमने कर डाला

घर चौखट को छोड़ त्याग

चढ़ बैठी तुम चौथा माला

अभी समय है, जीवन सुरभित

पान करो इस का बाला

ऐसे कूद के मरने पर तो

नहीं मिलेगी मधुशाला

Prasoon Joshi’s guess would have been this:

जिंदगी को तोड़ कर

मरोड़ कर

गुल्लकों को फोड़ कर

क्या हुआ जो जा रही हो

सोहबतों को छोड़ कर

And without Rahim ji, every poem would have been incomplete, so Rahim ji would have said something like this:

रहिमन कभउँ न फांदिये, छत ऊपर दीवार

हल छूटे जो जन गिरि, फूटै और कपार

The writings of the great Tulsidas ji would have been like this:

छत चढ़ नारी उदासी कोप व्रत धारी

कूद ना जा री दुखीयारी

सैन्य समेत अबहिन आवत होइहैं रघुरारी

The words of Kabir ji were like this:

कबीरा देखि दुःख आपने, कूदिंह छत से नार

तापे संकट ना कटे ए खुले नरक का द्वार

श्याम नारायण पांडे

ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी

वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी

सिंहनी की ठान से, आन बान शान से

मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से

तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो

तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।

गोपाल दास नीरज

हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा

मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा

जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से

जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा

राम कुमार वर्मा

हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाट मत जोहो।

जानता हूँ इस जगत का

खो चुकि हो चाव अब तुम

और चढ़ के छत पे भरसक

खा चुकि हो ताव अब तुम

उसके उर के भार को समझो।

जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोहो,

हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।

हनी सिंह

कूद जा डार्लिंग क्या रखा है

जिंजर चाय बनाने में

यो यो की तो सीडी बज री

डिस्को में हरयाणे में

रोना धोना बंद कर

कर ले डांस हनी के गाने में

रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये

फार्म हाउस के तहखाने में

90 के दशक के लव की आवाज कुमार सानू कुछ यूँ गाते:

जिन्दगी तो एक जंग है

हर कोई यहां तंग है

मत कूद जाना दीवार से

वरना मर जायेगा हर अश्कि इंतज़ार से।

The thought of the poets was going on in such a way that after 5 minutes that girl got up and said, let the hair dry, now let me go and have breakfast.

Jyotirvid Boxer Dev Goswami

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